
<span;>यौमे आज़ादी
<span;>15 अगस्त 2023
<span;> हम अपनी जान की दुश्मन को “भी जान कहते हैं।”
<span;>मुहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं”
<span;>हर जानदार आज़ादी चाहता है चाहे परिंदा हो चाहे चौपाये चाहे नबातात हर एक खुली फ़िज़ा में साँस लेना चाहता है।
<span;>लेकिन ये बहुत कड़वी सच्चाई है कि दुनिया में इंसान की आमद से ही इंसान इंसान को गुलाम बनाता है और इंसान ही इंसान का गुलाम बनता चला आ रहा है।
<span;>अपना प्यारा मुल्क भी अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था
<span;>जब हम अपने वतने अज़ीज़ हिंदुस्तान की तारीख़ का मुताला करते हैं तो जी करता है कि आज यानी 15 अगस्त को हम जितना भी रब का शुक्र अदा करे कम है
<span;>क्योंकि आज से 76 साल पहले इसी तारीख को हमारा मुल्क अंग्रेजों के जबर व इस्तिबदाद से आजाद हुआ था।
<span;>आज़ादी से पहले ये हालात थी की मुल्क हमारा था क़ानून उनके थे जिस्म हमारा था पर हुकूमत उनकी थी खेत हमारे थे पर मालिक वो थे हमारे ऊपर जुल्म के पहाड़ तोड़े जाते थे पर हम आह भी नहीं कर सकते थे फ़िर मुज़ाहिद्दीन ए आज़ादी उठ खड़े हुए
<span;>जिन्हों ने अपनी जान की परवाह नहीं की, उनकी आंखों में सिर्फ आजादी का ख्वाब था कि हमारी आने वाली नस्ले खुली फिजाओ में सांस ले सके इस आजादी को पाने के लिए अशफाकउल्ला खान ने फांसी के फंदे को चूमा अल्लामा फजले हक खैरा बादी ने काले पानी की सजा पाई भगत सिंह फांसी के तख्ते पर खड़े होकर कहा था की
<span;>“अब भी जिसका खून ना खोला खून नहीं वो पानी है
<span;>जो ना देश के काम आये वो बेकार जवानी है”
<span;> बहादुर शाह जफर से अंग्रेजों ने कहा था आजादी तुम्हारे लिए ख्वाब है इस लिए की
<span;>“दम दमे में दम नहीं अब खैर माँगो जान की
<span;>ऐ ज़फ़र ठंडी हुई शमशीर हिंदुस्तान की”
<span;>पलट कर ज़फ़र ने जवाब दिया था की
<span;>“ग़ज़ियो में बू रहेगी जब तलक ईमान की
<span;>तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की”
<span;>राम प्रसाद बिस्मिल और साथी अदालत आते जाते यही नज़्म गाते थे
<span;>“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
<span;>देखना है जोर कितना बजुये कातिल में है”
<span;>वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आशमा
<span;>हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है”
<span;>बच्चे जवान बूढ़े सभी ने मिलकर देश को आज़ाद कराया अपनी जान की क़ुर्बानिया दी जिस के नातिजे में हमें ये आज़ादी की नेमत मिली हमारा प्यारा मुल्क कितना ख़ूबसूरत है
<span;>अल्लामा इक़बाल ने कहा है
<span;>“सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा।”
<span;>हम बुलबुले हैं इसकी ये पासबाँ हमारा”
<span;>“मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
<span;>हिंदी है हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा”
<span;>: मोहम्मद मुकीम खान रज़वी
<span;>खातीब व इमाम मस्जिद हाजी काले खां रसूलपुर आगरा कैंट .